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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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डॉ. उदयवीर शर्मा

नांव : उदयवीर शर्मा
शिक्षा : एम.ए., बी.एड., पीएच. डी.

जन्म-तिथि अर स्थान
4 जून सन् 1932 ई. बिसापू (झुंझणुं-राज.)

मौजूदा काम धन्धो
अध्यापकी

छप्योड़ी पोथिया
पिरथीराज-सुरजां (लोक-काव्य)

पत्र-पत्रिकावां में छप्योड़ी रचनावां
वरदा, लाडेसर, साधना, ज्योति, जलमभोम, राज-भारती, मरूवाणी, मधुमती आद पत्रिकावां में कविता, कहाणी एकांकी अर संग्रै-ग्रथां में भेली कर्योडी रचनावां

अणछपी रचनावां
राजस्थानी व्रत-कथावां (2-3-4) खंड, जनकाव्य, लोकगीत, लोक-कथावां, बाल-कथावां

दूजी सूचनावां
राजस्थान साहित्य समिति, बिसापु रा उपमंत्री-जनपदी साहित्य सम्मेलन, लक्ष्मणगढ़ (सीकर) री कार्यकारिणी रा सदस्य-सेखावाटी रै हिन्दी-राजस्थानी साहित्य पर सौध-प्रबंध लिख्यो।

सदीव रो ठिकाणो
बिसापु (झूंझणुं-राज.)

मौजूदा ठिकाणो

वरिष्ठ अध्यापक, राज. उच्च माध्यमिक विद्यालय, राणोली (सीकर-राज.)

राजस्थानी भासा रो विकास-क्रम अर मानता सारू मानदण्ड -डॉ॰ उदयवीर शर्मा

( डॉ॰ उदयवीर शर्मा हिन्दी एवं राजस्थानी के प्रख्यात साहित्कार हैं आपने कविता, कहानी, एकांकी, निबंध, समीक्षा आदि विभिन्न विधाओं में प्रभूत साहित्य की रचना की है। साहित्य-साधना में निरत रहने वालै डॉ॰ शर्मा जी को गत रविवार दिनांक 25. दिसम्बर 2011 को कोलकाता में अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा राजस्थानी भाषा साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया।  यह लेख आपके द्वारा उक्त अवसर पर पढ़ा गया है जिसका मूल पाठ राजस्थानी भाषा में है । जिसे हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं - संपादक )

भारत री आधुनिक आर्य भासावां में राजस्थानी भासा रो एक महताऊ स्थान है। दस कोड रै लगै-टगै बोलणियां रा मायड़ भासा होंवतां थकां भी भारत रै संविघान में इण नै प्रान्तीय भासा’री पांत में ठोड को मिल सकी नीं। आ एक घणी पीड़ा री बात है। राजस्थानी भासा बोलणियां रो आपरी मायड़ भासा ताणी लगाव-जुड़ाव भी घणो ओपतो है, फेर भी राजस्थान री प्रान्तीय भासा नै वाजिव प्रतिष्ठा को मिल पाई नीं। हिन्दी रो बोलबालो है। भासा विज्ञान रा लूंठा  पंडितां राजस्थानी नै पूर्ण सुतंत्र भासा रो मान-सम्मान अर पद दियो है।  फेर भी साहित्य-संसार में इण नै हिन्दी री एक शाखा ही मानी जावै, आ अणजोगती बात है।  भारत रा साहित्य मनीषियां राजस्थानी’री घणमोळी साहित्य-सम्पदा री पुरजोर सबदां में खुलै मन सूं प्रशंसा करी है। फेर भी इण रै जीवण सूं जुड़्यौ साहित्य रै उत्थान ताणी हिन्दी साहित्य-संसार में भी कोई कारगुजारी देखणै में कोणी आवै। राजस्थान रै इतिहास री भांत ही राजस्थानी साहित्य री आवाज आखै भारत में गूंजी है पण भारत री राष्ट्रीय विचार धारा रै पुरोधावां रो ध्यान इणकांनी कोनी गयो, आ घणी दुखदायी बात है।


राजस्थान में अब साहित्यिक जागरण जोर पकड़या ही कोई पार पड़ै। राजस्थान में हिन्दी रो पुरजोरो लगाव जुड़व है अर होवणो भी चाइजै पण मायड़ भासा रै मोळ पर होंवणो घाटै री बात है। इण पर विचार करणो अब मोलवान अर समय सोवणी बात है।


आ बात मानण जोग है कै राजस्थानी नाम घणो पुराणो कोणी है। पैळी मरुप्रदेश री भासा होवणै सूं इण नै मरुभासा कह्यो जांवतो। स्यात पिंगल रै जोड़वै में इण रो नाम डिंगल भी चाल्यो। भारत तै दूरदराज प्रान्तां में फैल्योड़ा राजस्थानी प्रवासियां नै मारवाड़ी कह्यो गयो। इण रै प्रभांव सूं इणां री भासा नै मारवाड़ी कह्यो गयो अर इणी आधार पर ओ ही नाम आखै राजस्थान वासियां री जबान रो गौरव धारण कर लियो। मारवाड़ संभाग रो योगदान भी ई नामकरण में मान्यो जा सकै। राजपूत राजावां रो प्रभावी केन्द्र होवणै सूं नामी, लूंठो अर चावो-ठावो इतिहासकार कर्नल टाड इण प्रदेश नै राजस्थान नाम दियो। ई आधार पर अठै री भासा रो नाम राजस्थानी चाळ पड़्यो। इण नै भासा-सरिता रै स्वाभाविक प्रवाह रो प्रतिफळ ही कह्यो जा सकै। वर्तमान में राजस्थान प्रान्त री भासा रो नाम राजस्थानी दियो जावणो घणो आपतो-सोभतो अर सोवणो-मोवणो है। ओ नाम राजस्थान प्रान्त री एकता रो प्रतीक बण चुक्यो है, समृद्धि रो सार्थक सम्बळ बण चुक्यो है। अर सांस्कृतिक जुड़ाव रो सबळो आधार बण चुक्यो है। इण रो विकास राजस्थान रै विकास सूं जुड़’र एक रस होंवतो - सो लखावै।


राजस्थानी भासा रै प्राचीन गौरव नै भी ओलखो। विक्रमरी सातवीं सदी सूं लार ग्यारवीं सदी लग भारत में अपभ्रंश रो घणो बोलबालो हो। ई समै मे ही साहित्य री भासा सूं लोक भासा आपरो सुतंत्र  अर सोवणो सरूप सजावण में लागरी ही। जद साहित्य री अपभ्रंश भासा व्याकरण री जकड़-पकड़ में आयगी तो आधुनिक आर्य भासावां रो उदय होयो। आ कोई चाणचक होवणवाळी घटणा कोनी ही। यो काम धीर्यां-धीर्यां सहज भाव सूं सरसता रै साथै होयो। ईं वास्तै ईं अपभ्रंश अर आधुनिक आर्य भासावां रै बीच कोई सीमा रेखा कोनी खींची जा सकै। ईं समै ही राजस्थानी रो जलम होयो। आ शुरु-शुरु में अपभ्रंश सूं घणी भिन्न कोनी ही अर राजस्थान-गुजरात, माळवा अर ब्रज तक फैल्योडै भूखंडा में एक ही भांत री भासा बोली जावती। इणी भासा रो नाम प्राचिन (जूनी) राजस्थानी है। सोळवीं सदी रै लगै टगै ब्रजभासा अर गुजराती  जूनी राजस्थानी सूं अळगी होगी। पण राजस्थानी भासा अपभ्रंश सूं आपरो पुराणो संगपण निभया चालबो करी, आगै बढबो करी।
राजस्थान जूनै पण सूं घणो मोह राखै। साहित्य-संसार में भी आ बात देखण जोग है। राजस्थान रै प्राचीन, मध्यकालीन अर आधुनिक कवियां री भासावां रो मिलाण कर्यो जावै तो सगळा ही एक मारग बगणियां - सा लागै। सबदां रै प्रयोग में डिंगल रा कवि आपरी एक विशेष परिपाटी रा प्रेमी हा। आज भी उणां री बा रंगत देखी जा सकै। बै सगळा संस्कृत री परम्परा री तुलना में राजस्थानी छंद, राजस्थानी अळंकार अर राजस्थानी भासा नै ही घणी पसन्द करी। ईं कारण ही राजस्थानी साहित्य में संस्कृत रा तत्सम सवदां रो प्रयोग कम मिलै। अर जणा ही अठै री डिंगल में भी अपभ्रंश रो सांचो सरूप दरसावै।
राजस्थानी भासा री कई शाखावां है। इणमें पांच घणी उजागर अर पुराणी थरवी जेड़ी है - मारवाड़ी, ढूंढाड़ी, मालवी, मेवाती अर बागड़ी। मारवाड़ी इण में प्रधान है। आ जोधपुर, बीकानेर, शेखावाटी, जैसलमेर अर सिरोही तांई आपरै निजू भेदां रै साथै बोली जावै। मारवाड़ी री उपबोली मेवाड़ी है। ढूंढाड़ी बोली जयपूर, लावा, किशनगढ, टोंक, अजमेर, मेरवाड़ा में बोली जावै। ईं में भी घणो साहित्य मिलै। ईं में थोड़ी-घणी विशेषताबां ब्रजभासा री भी पाई जावै। इण री एक उपबोली है हडोती जिकी कोटा, बूंदी में बोली जावै। मालवी- माळवा में बोली जावै। इण रो प्रसार मेवाड़ अर मध्य प्रदेश रै कुछ भागां में पायो जावै।  ईं बोली री मधुरता सरावण जोग है। मेवाती अलवर-भरतपुर रै उतराधै -आथूणै भाग अर गुड़गांव में बोली जावै। ई पर ब्रजभासा रो प्रभाव देख्यो जा सकै। बागड़ी- बागड़ अस्थात डूंगरपुर, बांसवाडा में बोली जावै। ई पर गुजराती रो घणो प्रभाव है।


राजस्थान री सगळी बोलियां में अपणी-अपणी घणी विशेषतावां है। अर साहित्य सिरजण अर इणरो घणो सारथक सहयोग है। सै आप-आपरी थरपणा सिरजण अर अभिव्यंजणा में लाग रैई है। आगै सूं आगै बढणै में लाग रैई है। पण राजस्थानी भासा री एकता दीढ सूं देखां जणां कैवणो बणै कै खरा-खरी में मारवाड़ी नै ही खरी-सम्पूरी राजस्थानी समझणो-मानणो चाइजै क्यूं कै इण में प्रचुर मात्रा में साहित्य-सामग्री परम्परा सूं ही मौजूद है। ई भांत खरी अर सम्पूरी राजस्थानी रा दो भाग बण सकै - एक पूर्वी राजस्थानी अर दूजी पश्चिमी राजस्थानी। ढूंढाड़ी अर इण री बोलियां नै पूर्वी राजस्थानी कैवणो चाइजै अर मारवाड़ी नै पश्चिमी राजस्थानी। पूर्वी राजस्थानी पर ब्रज भासा रो प्रभाव पड्यो है अर पश्चिमी राजस्थानी गुजराती सें मेळ जोळ अर समानता राखै। ये दोनूं राजस्थानी ही है अर इण भांत राजस्थान प्रान्त भासा रै विचार सूं पूर्वी अर पश्चिमी दो धारावां रो मिल्यो जुल्यो गौरवपूर्ण प्रदेश है।


कोई भी भासा घणी बोलियां रो होवणो उण भासा री सम्पन्नता नै प्रगट करै। जिण भासा में जितणी घणी बोलियां होसी बा उतणी घणी वजनी, गहर-गंभीरी अर भरीपूरी अर समरिध भासा, भासा वैज्ञानिकां री दीठ सूं मानी गई है। राजस्थानी नै भी इणी दीठ सूं देखणी-परखणी चाइजै। इण री बोळियां इण री सांची धरोड़ है, इण रो मान-मुरतब है अर इणरी  फैरांवती कीरत धजा है। इण री बोलियां नै देख-सुण’र कोई प्रश्न करै कै ‘‘राजस्थानी कुण सी?’’ तो ओ प्रश्न साफ झूठो है, भरमाणियो है अर उण री दुरभावना नै दरसावै है।


आजादी रै घणां बरसां पैळी ही भारत अर विदेशां’रा भासा वैज्ञानिक अर विदवान राजस्थानी नै एक सुतंत्र भासा रै रूप में मानी अर इण रै गौरव री थरपणा करी, सरावणा करी। बै सगळा मानदण्ड उणां रै मन में जरूर रम्या-रैया होगा जिकां री गूंज आज सुणी जावै। आधुनिक विदवानां तै मुजब आगै लिख्यां मानदण्ड भासा री मानता सारू ईपता मान्या गया है -
1. साहित्य रो इतिहास (परम्परा) 2. विपुल मात्रा में प्रचीन अर आधुनिक साहित्य सिरजण 3. व्याकरण 4. भासा नै बोलिणियां री व्यापकता 5. परिक्षेत्र 6. वर्तमान रचना धर्मिता 7. लिपि 8. आपरो शव्दकोश 9. साहित्य, सामाजिक, संस्कृतिक संस्थाओं अर भासा वैज्ञानिकां द्वारा मान्यता 10. आपरी प्रवृत्ति आ संस्कृति 11. अनेकूं प्रख्यात विदवान।
राजस्थानी भासा ऊपर लिख्योड़ा सगळा मानदण्डां री पूरती करै। ईं कन्नै आपरो इतिहास है, साहित्य है, व्याकरण है, सबदकोश है अर इण री बोळणियां री संख्या घणी व्यापकता राखै। परिक्षेत्र भी व्यापक है। राजस्थान ही नहीं इणरै बां रै देश-विदेशां में राजस्थानी धड़ल्लै सूं बोली जावै। इणरै विकास रा स्त्रोत अपभ्रंश सूं भी आगै तक देखण में आवै। राजस्थानी भासा में साहित्य री सगळी विधावां में रचना करणिया’री एक लांमी कतार है। भारत री घणी भासावां लिपि देवनागरी है। राजस्थान री आपरी लिपि मोडिया जिणै महाजनी लिपि भी कही जावै है रो विकास कोणी हो सकणै सैं देवनागरी लिपि चालण लाग्गी। पुराना कागजां अर कोर्ट-कचहरी का दस्तावेजां में मोडिया लिपि को प्रचुर प्रयोग देखण मिलै है। पण अबार देवनागरी चालणै से आ लिपि विलुप्त होगी। फैर भी भारतरी धणी मान्यता प्राप्त भासा देवनागरी को प्रयोग करे है जणा राजस्थानी ताणीई क्यां री अड़चण है?


राजस्थानी नै देश री घणकरी साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संस्थावां अर भासा वैज्ञानिकां री मान्यता है। अमरीका तक इण रो रुतबो-रबाब मानै। विदेशां में राजस्थानी रो घणो आदर भाव है। फेर भी मानता सारू आंट कांई है? आ एक विचारण जोग बात है, अण जुगती बात है। आजादी रै पछै राजस्थानी री मानता राजनैतिक विचारां री दळदळ में फंसगी, पजगी उळझगी। इण नै इण संकट सूं उवारणै ताणी अब सगळा उपाय करणा जरुरी होयगा है। जन जुडाव रै अभाव पर भी जोरदार विचार करणो पडसी। सगळा नै मिल बैठ’र ई ईं संकट रा कंटकां नै काढण रा उपाय करणा चाइजै।

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